जश्न नववर्ष
भारत को जन्नत
बनाएँगे
जश्न नववर्ष का मनाएँगे
ढ़ल गया दिन ढ़ूँढ़ता
था
सपनों में खोया रहता था
ना आए पिछे साया भी
पदचिन्ह अपने मिटाता था
डर को अब भगाएँगे
जश्न नववर्ष का मनाएँगे
संबोधन पुराना घेरता
मन को
ज्यों प्रवासी लौट आया घर को
रहा गया कृषक बीज बोए बिन
तकता रहा त्यों मैं बदली को
खुशी के जाम
छलकाएँगे
जश्न नववर्ष का मनाएँगे
कुछ फैसले सुनाकर जो
विश्वास जगाया जनता में
नहीं बच पाए मंत्री-संत्री
धकेला पिछें सलाखों के
बस यूँही न्याय
चाहेंगे
जश्न नववर्ष का मनाएँगे
क्या औकात है
किसकी अब
हुआ जरूरी तो बतलाएँगे
मिलजुल कर रहेंगे हम
भारत को जन्नत बनाएँगे
जश्न नववर्ष का
मनाएँगे
जश्न नववर्ष का मनाएँगे
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गिरिराज जोशी "कविराज"
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