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नव वर्ष अभिनंदन

आया है नूतन वर्ष सखे

         

आया है नूतन वर्ष सखे

कितनी अतीत की संस्मृतियाँ
कितनी भावी अभिलाषाएँ
आया है लेकर वर्ष नया
कितनी नव जीवन आशाएँ
नव युग के नव संदेशों का स्वागत है आज सहर्ष सखे आया है नूतन वर्ष सखे

नयनो में नव उत्साह लिए
नंगों भिखमंगो की होली
शोषक जग के प्रति बोल रही
कुछ कुछ परिवर्तन-सी बोली
मानव जीवन है परिवर्तन परिवर्तन है उत्कर्ष सखे

आया है नूतन वर्ष सखे
इस नए वर्ष के साथ-साथ
कुछ-कुछ अशांत क्रंदन ध्वनि-सी
रह-रह कर कानों में गूँज रही
हाहाकारों की प्रतिध्वनि-सी
ऐसा लगता होना है कुछ जीवन में नव संघर्ष सखे
आया है नूतन वर्ष सखे

कृष्ण मोहन

  

अभिनंदन

नववर्ष की प्रातिभ
नवप्रभा ले हिरण्यगर्भ सूर्य
ब्रह्माण्ड-भूमण्डल में
हर पल हर कण-कण
ज्योतिमान कर रहा
उसका हर प्रभांश है कह रहा
उठ जाग तज तंद्रा
अथक तू निज कर्म कर
खुद को फलाकांक्षा से
असंग तू कर।
'मुठ्ठी बांधे आया था
हाथ पसारे जाएगा'
कुछ यह भी चिंता कर।
मोहांधकार में तू है लिपटा;
निज पुस्र्षार्थ जगाकर
ज्योतिपंथ के अग्रज को
सत्वर तू धर
आत्मभाव की ही ग्रीटिंस किताब
तू पढ़।
यह पिकनिक-पार्टी-हाय-हलो
तुझको क्या देगा
कुछ आगे की भी तैयारी कर।
नववर्ष की प्रातिभ नवप्रभा भी
उसका हर प्रभांश
हर पल हर जन से
क्षिति-जल-
पावक-गगन-समीरमय
अभिनंदन रही है मांग।
प्रकृति का भी अभिनंदन कर।
- विनोद कुमार

 
 

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