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कोई नवगीत नहीं गाया
 
नव वर्ष तुम्हारे आने का
मतलब मैं समझ नहीं पाया
मित्रों को नहीं बधाई दी
कोई नवगीत नहीं गाया

हे दिवस-निशा के अमिट भाल
तुम तो अखंड हो पूर्णकाल
तुमको मैं कैसे व्यक्त करूँ
किस तिथि को कहाँ विभक्त करूँ?
तुझमें ही सब जीते-मरते
पर कोई समझ नहीं पाया

साहब को गुलदस्ते देना
बदले में कुछ कागज लेना
सतही विश करना काढ़ खीस
दो दस दे लेना एक बीस
थोथा जग का व्यापार मीत
मुझको यह कभी नहीं भाया

ढाई आखर का मैं फकीर
दादूनानकमीरा कबीर
दुनिया अपनी अलबेली है
विक्रम ही गंगू तेली है
मित्रो सद्अर्थ लगा लेना
कह गया हृदय में जो आया

- उमा प्रसाद लोधी
२९ दिसंबर २०१४

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