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नित नूतन स्वप्न सँजोना
 
नित नूतन स्वप्न सँजोना
मत रिक्त कभी रखना आँखें
चाहे जगना या सोना
नित नूतन स्वप्न सँजोना।

नन्हें-नन्हें स्वप्नों में ही,
जीवन की है ख़ुशहाली
ख़ुशहाली से ही मन शोभित
जैसे प्रसून की डाली
बिन ख़ुशियों के कब खिलता
जीवन का बाग़ सलोना

सुनी कथा मकड़ी की तुमने?
बार-बार जो चढ़ती थी
गिरती थी भित्ती से फिर भी
साहस से ही बढ़ती थी
गिरो सैकड़ों बार मगर तुम
धैर्य कभी मत खोना

तुंग हिमालय ऐसे ही,
नभचुम्बी नहीं बना है
लगे बरस शत-कोटि उसे
क्षण भर में नहीं जना है
समय लगे ऊँचा बनने में
बात तनिक समझो ना!

घोर निराशा की यामिनि
जब मनाकाश में छाये
शिथिल क्लान्त बेबस-सा तन
बिलकुल परास्त हो जाये
शौर्य-दीप से भर लेना
तब मन का कोना-कोना।

- सुरेश कुमार 'सौरभ'
२९ दिसंबर २०१४

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