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जाग जाओ
 
जाग जाओ
दे रहा
नव वर्ष दस्तक द्वार

पास की मंडी, सड़क पर
वही परिचित शोर खासा
पंछियों का गान, सूरज
लग रहा है कुछ नया- सा

नहीं खुशियाँ
कहीं बाहर
कह रहा भिंसार

आँख मलते उठी बेटी
मुस्कुरा गल-बाँह डाली
सुबह की शुभकामना दे
रख गई 'अनु' चाय काली

अखबार सरका,
चाय पी
जीवन लगा उपहार

- शशिकांत गीते
२९ दिसंबर २०१४

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