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हों सृजन अब कुछ नये
 
हों सृजन अब कुछ नये से
कुछ नई सी कल्पनाएँ।
फिर नया यह वर्ष आओ
हम सभी मिलकर मनाएँ।

छोड़ दें हम पंगु सब
परिपाटियों को।
दें नये स्वर से गुँजा
इन वादियों को।
जो सुखद सी सीख गत से
है मिली थाती हमें
साथ ले बढ़ते चले हम
तोड़ कर सब वर्जनाएँ
फिर नया यह वर्ष आओ
हम सभी मिलकर मनाएँ।

मुफलिसी सीलन भरे
कोनों पसरती।
जिन्दगी भय लूट के
सायों सिसकती
घूप पर हक है सभी का
सब जियें निर्भय यहाँ
मानसों के द्वार खोलें
आ रहीं संभावनाएँ।
फिर नया यह वर्ष आओ
हम सभी मिलकर मनाएँ।

- सीमा हरि शर्मा
२९ दिसंबर २०१४

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