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नये साल के नये माह का मौसम
 
नये साल के नये माह का
मौसम आया
लेकिन सूरज भौंचक
कितना घबराया है!

चटख रंग की हवा चली है
चलन सीख कर
खेल खेलती,
बंदूकों के राग सुनाती
उनियाये कमरों में
बच्चे रट्टा मारें
पंथ-पृष्ठ की तहरीरों से
'वाद' सिखातीं
मंतव्यों में तथ्य नहीं,
बस तेरा-मेरा
सत्य वही जो
सबसे जबरन मनवाया है!

सरसाता है ख़ौफ
उजाला झींसी-झींसी
अगला करे सवाल--
'पंथ के नाम उचारें'
यह कैसा संभाव्य,
देह बारूद-छुई ले
सहमे-सहमे लोग
बाड़ में बने कतारें
नया सवेरा कैसा
जब आशाएँ सोयीं
हृदय हूक से भरा हुआ
फिर बह आया है!

किन मूल्यों को प्रात समेटे
बहका आया
उन्मादों की हनक
क्रोध के चिह्न भाल पर
सिर की गिनती मात्र लक्ष्य हो
यदि चिंतन का
लानत ऐसे किसी क्रोध
या वाक्-जाल पर!
चिता-दग्ध है
किन्तु, क्षार है, सम्यक उर्वर
लिए ओस नम तभी हरा
मन रह पाया है!

- सौरभ पांडेय
२९ दिसंबर २०१४

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