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नव बरस
 
सिर्फ सच का साथ देना
नव बरस

धाँधली अब तक चली, अब रोक दे
सुधारों के लिये खुद को झोंक दे
कर रहा मनमानियाँ, गाली बकें-
ऐसा जनप्रतिनिधि गटर में फेंक दे
सेकता जो स्वार्थ रोटी भ्रष्ट हो
सेठ-अफसर को न किंचित टेक दे
टेक का निर्वाह जनगण भी करे
टेक दें घुटने दरिंदे
इस बरस

अँधेरों को भेंट कुछ आलोक दे
दहशतों को दर्द-दुःख दे, शोक दे
बेटियों-बेटों में समता पल सके-
रिश्वती को भाड़ में तू झोंक दे
बंजरों में फसल की उम्मीद बो
प्रयासों के हाथ में साफल्य हो
अनेक रहें नेक, अ-नेक लड़ मरें
जयी हों विश्वास-आस
हँस बरस

- संजीव सलिल
२९ दिसंबर २०१४

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