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नए वर्ष में
 
नए वर्ष में नई चुनरिया
ओढ़ उषा जब घर आएगी
पग फेरे में
नव प्रभात संग
धरती रौनक पा जाएगी

नव पुष्पित पौधों पर सजकर
शबनम के मोती चमकेंगे
उपजाऊ माटी में गिरकर
कृषकों के श्रम-बिन्दु सजेंगे
खग वृन्दों के
मृदुल गान में
वेद ऋचा भी सुर पाएगी

अबकी है यह आस हमारी
सर्पहीन चंदन का वन हो
नागफ़नी ना उगने पाए
ऐसा भारत का उपवन हो
बाँसों के
झुरमुट से आकर
तान बँसुरिया की गाएगी

नव प्रवाह में नव निनाद भर
नदियों में नव हलचल होगी
दहशत भूल हँसी की ठनगन
वामाओं में हरपल होगी
नवल चाँदनी
नव शीतलता
हौले हौले बरसाएगी

- ऋता शेखर 'मधु'
२९ दिसंबर २०१४

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