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लो आ गया नव वर्ष
 
फिर क्षणिक खुशियाँ लिए
लो आ गया नववर्ष!

कोई ख्वाहिश बुलबुलों-सी
फूटती है झील में ही
कोई पिक्चर कल्पना-की
चल रही है रील में ही
झील का जल थम गया है
रील में है दर्श।

एक गठरी सीख हमको
साल ये दे जा रहा है
सीखना कुछ बैठकर अब
गीत कोई गा रहा है
छा रहा है आज देखो
वक्त पर भी हर्ष।

दूर तक कोहरा घना है
ओस बिखरी खेत में
बाँध मफलर जा रहा है
खेलने वो रेत में
रेत मुठ्ठी से फिसलती
ठीक जैसे वर्ष।
फिर क्षणिक खुशियाँ लिए
लो आ गया नववर्ष।

- पवन प्रताप सिंह 'पवन'
२९ दिसंबर २०१४

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