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नए साल की सुबह नवेली
 
दूर दिशा में कोयल कुहकी
पुलक उठी पुरवाई।
नए साल की सुबह नवेली
धूम-धाम से आई।

अगुवानी में नभ कर जोड़े
काँप रहा था कुहरा ओढ़े
नव्य-निशा के प्रथम प्रहर ने
नवरंगी गुब्बारे छोड़े।

जाग-जाग रजनी गंधा ने
नव सुगंध बिखराई।

दिनकर ज्योति कलश भर लाया
साज़-साज़ ने गीत सुनाया
उद्यानों के फूल-फूल ने
मिलकर स्वागत द्वार सजाया।

जयकारों की जुड़ी शृंखला
सुर में बजी बधाई।

सहज सौंपकर अपना आसन
नयन नीर भर चला पुरातन
किया ग्रहण पदभार नवल ने
नवता का देकर आश्वासन।

और उमीदों के पन्नों पर
अपनी मुहर लगाई।

- कल्पना रामानी
२९ दिसंबर २०१४

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