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आई प्रभाती |
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वर्ष नूतन नौनिहालों को लिए
आई प्रभाती!
टाँग कर बस्ता सँवरती, चोटियाँ दो बाँध लीं हैं
देखिये नन्हीं सी परियाँ, पाठशाला को चलीं हैं
तितलियों की रंगकारी सी सुबह
कितनी सुहाती!
रंग नूतन स्वप्न नूतन, देखते हैं नैन प्यारे
दें उचित पथ के प्रदर्शन, लाड़ के संग दें सहारे
खुल चले सम्भावनाओं की उडानें
गुनगुनाती!
आ गयीं नव कोंपलें, बरगद बहुत खुश हो रहा है
झूमता गाता हुआ, विस्तारणा में खो रहा है
अंक में भरकर समेटे गर्व से
अपनी ही थाती!
- गीतिका 'वेदिका'
२९ दिसंबर २०१४ |
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