अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

ऐसा हो नव वर्ष
 
कुसुमित हों सारे सुमन, उपवन में हो हर्ष
दूर देश फैले महक, ऐसा हो नव वर्ष

हर चूल्हे में ज्वाल हो, हर कुटीर में धान
भेदभाव से रहित हों, आरति और अजान

निर्दोषों के रक्त से, धरा न हो अब लाल
दहशत की लंका जले, चले न कोई चाल

माँग न सूनी कोइ हो, उजडें अब ना अंक
लुटे न कोई 'दामिनी', ऐसा चढे मयंक

विश्व गुरू भारत बने, प्रतिपल हो उत्कर्ष
चहुँ दिस परचम जीत का, ऐसा हो नव वर्ष

- परमजीत कौर रीत
५ जनवरी २०१५

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter