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ऐसा हो नव वर्ष |
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कुसुमित हों सारे सुमन, उपवन
में हो हर्ष
दूर देश फैले महक, ऐसा हो नव वर्ष
हर चूल्हे में ज्वाल हो, हर कुटीर में धान
भेदभाव से रहित हों, आरति और अजान
निर्दोषों के रक्त से, धरा न हो अब लाल
दहशत की लंका जले, चले न कोई चाल
माँग न सूनी कोइ हो, उजडें अब ना अंक
लुटे न कोई 'दामिनी', ऐसा चढे मयंक
विश्व गुरू भारत बने, प्रतिपल हो उत्कर्ष
चहुँ दिस परचम जीत का, ऐसा हो नव वर्ष
- परमजीत कौर रीत
५ जनवरी २०१५ |
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