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पंद्रह से है आस
 
चौदह अब इतिहास है, पंद्रह से है आस।
समय सलोना कब रुका, क्षण भर अपने पास।

पल बीता तो कल हुआ, कल बीता तो मास
पल पल गुजरे साल के, हर पल कल की आस।

खुशियाँ कितनी दे गया, गुजर गया जो साल
जाते जाते कर गया, धरती को कुछ लाल।

बाँट रही खुशियाँ किरण, स्वागत है नववर्ष
समय देव के नेह से, भर भर झोली हर्ष।

कल तक जो जन साथ थे, आज नहीं कुछ साथ
परिवर्तन के दौर में, अपने खींचे हाथ।

काल चक्र चलता रहे, निशि दिन आठों याम
सूर्य चन्द्रमा चल रहे, रुकने का क्या काम।

चलते रहना जिन्दगी, रुक जाना है मौत
एक साथ रहती नहीं, मौत जिन्दगी सौत।

- हरिवल्लभ शर्मा
५ जनवरी २०१५

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