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स्वागत में तैयार हैं
 
स्वागत में तैयार हैं, नजरें कई हजार।
दीपक, रंग, रँगोलियाँ, तोरण भी तैयार।

एक ओर हठ शिशिर का, दूजे है उत्साह
नाचें, गाएँ जन सभी, दिखे न कहीं उछाह।

सब कुछ भला भला रहे, देना यह आशीष
दुःख-दुबिधा, संताप को, दाबे रखना ईश।

ऐसा कहीं नहीं घटे, दामन काला होय
अधरों पर मुस्कान हो, नैन न कोई रोय।

सुख की दो रोटी मिलें, और मान की साँस
मिले काम हर हाथ को, और मिले विश्वास।

चौदह में जो घट गया, अब न घटे इस वर्ष
नूतन वर्ष प्रकाश में, पायें सब उत्कर्ष।

- अनिल कुमार मिश्र
५ जनवरी २०१५

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