अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

साल नगीना हो
 
चाँदी हो सोना हो
मानिक मोती मीना हो
उपहारों के कोष लुटाता
साल नगीना हो

बैठ हवा के पंखों पर
इच्छाएँ इठलाएँ
जहाँ कहीं बिखरा है
चुन लें सुख बाँटें पाएँ
हृदय रहे मृदु भाव-भरा
पल-पल रस-भीना हो

भोर धुले होठों को
चिड़ियाँ प्रेम तराना दें
साँझ खुले जूड़ों को
कलियाँ चाँद सुहाना दें
तन और मन के बीच अड़े
वह परदा झीना हो

दाने-दाने पर लिक्खे हों
फ़सलों वाले गीत
मुक्त रहे कल के तनाव से
काम-काज की रीत
जिसका हो उसको लौटा दे
जिसने छीना हो

- अश्विनी कुमार विष्णु
२९ दिसंबर २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter