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वैसे होंगे साल भी |
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दिन वैसे ही, वैसे होंगे साल
भी
कुछ अच्छे कुछ बदतर होंगे हाल भी
खून हमेशा से ही जलता आया है
शुक्र यही, यदि बची रह सके खाल भी
कुछ सपने पिछले भी पूरे होंगे तो
आयेंगे घर में खुशियों के माल भी
कितने ही समझौते करने पड़ जाएँ
किन्तु गलत शर्तों को देना टाल भी
जीने की है शर्त यहाँ ठंडापन भी
थोड़ा-थोड़ा आता रहे उबाल भी
बचा रखेंगे फिर भी अपने गीतों को
कुछ बिगड़ेगा सुर, टूटेगी ताल भी
- पंकज परिमल
५ जनवरी २०१५ |
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