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वर्ष नया आया है
 
वर्ष नया आया है सब दुख हरने को।
मरहम लेकर घाव पुराने भरने को।

बीत चुकी बातों को कब तक रोना है,
आगे कदम बढ़ाओ स्वागत करने को।

उर में नव ऊर्जा का हम संचार करें,
छोड़ो खुद सारे हालात सुधरने को।

अथक निरंतर सबकी प्यास बुझाता है,
देखो मनभावन बहते हर झरने को।

बगिया में महके हैं फूलों के गुच्छे,
देखो प्रेमी आये खूब विचरने को।

ऊषा ने बिखराई मदमाती किरणें ,
जैसे दुल्हन का हो रूप निखरने को।

पाखी ने सुन्दर पंखों को फैलाया,
पूरा नभ अपनी बाहों में भरने को।

जीवन की नैसर्गिक विजय पताका को,
छोड़ो नभ में ऊँचा खूब फहरने को

-सुरेन्द्रपाल वैद्य
३० दिसंबर २०१३

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