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आया है नव वर्ष
 
अब भूली बिसरी स्मृतियों के
उभरे हैं कोलाज
आया है नववर्ष हमारा
सिर पर बाँधे ताज

आशाओं के अंकुर फूटे
चहकी अँगनाई
धूप गुनगुनी घर-द्वारे
औ बालकनी आई
कड़क चाय
औ मटर की घुघरी
हो जाय अब आज

अभिलाषा की बेल हमारे,
छप्पर पे छाई
नई वधू सी आज चाँदनी
सहमी घर आई
नहीं उठाती सिर से अपने
घूँघट भीतर लाज

कठिन स्वप्न आँखों में जिनके
युवा-शक्ति की जय हो
एक हमारे सातों सुर
औ एक हमारी लय हो
अनुभव ने भी हाथ रख दिया
सिर पर अपना आज

-संजू शब्दिता
३० दिसंबर २०१३

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