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कल के पन्नों पर
 
कल के पन्नों पर हम लिख दें
अपना भी इतिहास

बीज रोपते हाथों की
उष्मा बन जाएँ
चट्टानी धरती पर
झरनों से बह जाएँ
सूखे कंठों की खातिर हो लें
बुझने वाली प्यास

सौंधी मिट्टी वाला आँगन
हर चूल्हे की आँच
और न टूटे
गलती से भी
संबंधों के काँच
घुटते रिश्तों में फिर भर दें
कतरा –कतरा साँस

कोहरे की धुँधली परतों से
क्या डरना है ?
लू-लपटों से भरी राह भी तय करना है
ठानेंगे तो
हो जाएगा
बित्ते भर आकाश

रोहित रुसिया
३० दिसंबर २०१३

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