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नया साल है चलकर आया
 
नया साल है चलकर आया देखो नंगे पाँव
आने वाले कल में आगे देखेगा क्या गाँव

धधक रही भठ्ठी में महुवा
महक रहा है
धनिया की हँसुली पर सुनरा
लहक रहा है
कारतूस की गंध अभी तक
नथुनों में है
रोजगार गारंटी अब तक
सपनों में है
हो लखीमपुर खीरी, बस्ती या
फिर हो डुमराँव
कब तक पानी पर तैराएँ
काग़ज़ वाली नाव

माहू से सरसों, गेहूँ को
चलो बचाएँ जी
नील गाय अरहर की बाली
क्यों चर जाएँ जी
ठंडी रात में बुढ़िया माई
बडबड नहीं करें
हम अपने हिस्से का सूरज
खुद ही चलो गढ़ें
धूप कड़ी हो तो दे जाएँ
थोड़ी थोड़ी छाँव
ठंडी ठंडी पुरवाई से
बेहतर है पछियाँव

-राणा प्रताप सिंह
३० दिसंबर २०१३

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