|
नये साल का सूर्य |
|
द्वार पर अब तुम्हारे है आकर
खड़ा
यह नये साल का सूर्य
देखो जरा !
खूब कोहरे ने चाहा इसे रोकना
शीतलहरों ने चाहा इसे टोकना
किन्तु, है ऊर्जा, इसमें संकल्प है,
इसको ताकत न सकती है
कोई डरा
यह समय से चले, हो उदय, अस्त हो
कट रहे रात-दिन काम में व्यस्त हो
दिन हो इस देश में, रात परदेस में
कुछ बँटा ही नहीं इसकी
पूरी धरा
झील में, ताल, सागर, नदी, रेत में
बो रहा धूप है, हर किसी खेत में
हो सबल याकि निर्बल,धनी या ग़रीब
सबके जीवन का है, बस
यही आसरा
ऊर्जा तुम भरो, एक संकल्प लो
छोड़ आलस उठो, सूर्य जैसा चलो
क्या असंभव है, जो तुम न कर पाओगे
सूर्य निर्जीव तुममें है
जीवन भरा
-राममूर्ति सिंह ‘अधीर’
३० दिसंबर २०१३ |
|
|
|
|
|