धीरे- धीरे चल दिया, वर्ष
शमन की ओर
खट्टे-मीठे क्षण चले, सुधियाँ बड़ी बटोर
दस्तक देती आ रही, शनै:-शनै:अब 'राज'
नवल-वर्ष उत्कर्ष की, सौंधी-सौंधी भोर
अँधियारे का सूर्य ने, कर
डाला आखेट
काली चादर रात्रि ने, ली है स्वयं समेट
तुम भी बढ़ कर प्रेम से, स्वीकारो मित्र
अदितिपुत्र ने दी हमें किरणों की जो भेंट
नवल वर्ष में आपको, मिलें नवल उत्कर्ष
कठिन कार्य में भी नहीं, हो किंचित संघर्ष
हीरक सम हर दिन रहे, सोने सी हर रात
नवल ख्याति लाए सतत, चौदह का नववर्ष
नित्य सतत जलते रहें, खुशियों के नवदीप
मन उमंग परिपूर्ण हो, कुल को करें प्रदीप
श्रेष्ठ मित्र निशि-दिन मिलें, आकर बारम्बार
दुष्टों की छाया कभी, झाँके नहीं समीप
नित्य नवल मिलते रहें,
नए-नए सम्मान
नव साहित्यिक क्षेत्र में, रचें नए प्रतिमान
सृजित करें रचना अमर, दिव्य, श्रेष्ठ अनुकूल
सफल रहें, प्रमुदित रहें, रहें सतत 'श्री'मान
-राज सक्सेना
३० दिसंबर २०१३ |