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इस दिन
 
तम चीरने के हमारे उद्यम को
सारी करुण दिव्यताएँ दें आशीर्वाद!

वे करें प्रज्ज्वलित ज्योति शिखाएँ
हमारी सहभासी सहवासी आत्माओं की
जो देखा करें सभी अनदेखों को,
जो करें सुरक्षित एकान्त विपद्ग्रस्तों को,
जो उन्हें मिला दे जो बँटे हुए हैं,
जो दें प्यार उन्हें जो उपेक्षित रहे।

इस दिन,
फिर हर पल और निमिष में,
अनुरोध हमारा उन दिव्य शक्तियों से
कि हम सीख सकें -
अपना सच्चा स्वरूप देखना,
केवल स्वयं की ओर देखना नहीं;
हम जो सीमित रह जाते हैं
अपने कर्मों, पदों और साधनों में।

इस दिन,
फिर हर पल और निमिष में,
हर सम्मुखीन प्रसंग में
अनुरोध हमारा उन दिव्य शक्तियों से
कि हम सीख सकें -
यदि हम पाए जाएँ चूके हुए
प्रामाणिकता, विवेक और सबके लिए उदार प्रेम में
तो इनका पुनर्जन्म हो
हम सबके अंत:करण में
एक परिवार की भाँति।

प्रेम मोहन
३० दिसंबर २०१३

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