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क्या तुम नये वर्ष हो
 
क्या सूझती है तुम्हें?
हर पहली जनवरी को,
नये मेकअप और परिधान में
अद्‍भुत शान से पुनः अवतरित होते हो
किंतु तुम्हारी प्रकृति रहती है वही
इसलिये पहचाने जाते हो
कि तुम वही वर्ष हो
जो विगत मे थे।

लोग तुमसे त्रसित होते हैं
तो ओढ लेते हो एक नयापन
अपनी भावभीनी विदाई धूमधाम से करवाते हो
और अगली सुबह स्वागत अभिनंदन के मध्य
फिर पहुँच जाते हो !
किंतु हर बार तुम्हारे बारह महीनों में
होता है भरा
वही राग वही मुखडा और अंतरा
घटनाओं के पिटारे में
होते हैं- महँगाई, अपराध,
व्यभिचार, भ्रष्टाचार का सामान,
वही दिन वही माह
कभी जिनमें लू से तपाते हो,
कभी शीत लहर चलाते हो
कहीं अतिवृष्टि कहीं सूखा कराते हो
वस्त्रहीन भूखों को उसी निर्ममता से मरवाते हो
सदा यही कहानी दोहराते हो।

इसीलिये पहचाने जाते हो
कि तुम वही हो सिर्फ़ चोला बदला है
नये वेष में स्वागत है तुम्हारा
लेकिन इस बार पहली को
लेना शपथ स्वयं को बदलने की
तुम बदलोगे तो हमारा वक्त भी फिर
अवश्य बदलेगा
अभिनंदन !!!

-ओम प्रकाश नौटियाल
३० दिसंबर २०१३

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