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अभी चीखता साल गया है
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तुड़ी-मुड़ी चिट्ठी के जैसा
लगता साल पुराना ।
कोरा कागज बना लकीरें
कितनी आड़ी-तिरछी,
तुतली बातें लिखती गुड़िया
मन से अच्छी-अच्छी,
छोटे-छोटे सपने लेते
सुंदर रूप सलोना,
पंख लगा कर नई उड़ानें
भरते नन्हें पंछी
खिली-खिली सी धूप छेड़ती
फिर इक नया तराना।
गई रात के पट चिपका कर
खिड़की से दिन उगता,
आशाओं का छौना सूरज
अँगड़ाई ले जगता,
दूर-दूर तक झकमक राहें
नया जोश भर देतीं,
नये साल में नई मुरादें
लिये मुसाफिर चलता,
खट्टी मीठी बाँध पोटली
आगे सफ़र सुहाना।
--मानोशी
३० दिसंबर २०१३ |
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