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नये वर्ष का स्वागत
 
स्वागत करता नये वर्ष का, मन आशा का दीप लिये
उम्मीदों के अब तक कितने,
जलते बुझते रहे दिये।

पृष्ठ एक बनकर
अतीत का हर नव वर्ष अस्त हो जाता
जीवन के अँधियारे पथ को और धुँधलका सा दे जाता
रह जाते हैं सिर्फ पलटते हम अपना इतिहास पुराना
और सोचते बीते कल से,
हमको भी तो था कुछ पाना।

बैठे हैं हम
पछतावे के
ऐसे कितने दर्द पिये।

नयी सदी के
द्वार खड़े हम, जाने क्या -क्या सोच रहे हैं,
क्या भविष्य की बात करें जब वर्तमान मान को कोस रहे हैं।
क्या बोया जो कल काटेंगे, क्या है शेष जो हम बाँटेंगे,
फिर भी आशाओं के पौधे बंजर मन में रोप रहे हैं।
आस यही है अब भी शायद
पल दो पल हम और जियें

उम्मीदों के
अब तक कितने
जलते बुझते रहे दिये।

-मधु शुक्ला
३० दिसंबर २०१३

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