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पाँच क्षणिकाएँ
 
नये साल की नव किरण

दुखिया की आँखों में ठहरा ये आँसू
जैसे पुरइन के पात पर पड़ी
ओस की बूँद।
आएगी नये साल की
नव किरण
सूख जाएँगे आँसू
उतर जाएगा इंद्र धनुष आँखों में।


जंगल में

जंगल के भीतर
बहुत भीतर
जहाँ पहुँच नहीं पाता कोई
पहुँचेगा नये साल का सूरज
अबकी वह देगा अपनी ऊष्मा और उजास
छँट जायेगा अँधेरा जंगल का।


सूरज सुनो


सूरज सुनो
तुम पहले दिन ही
मत लुटा देना अपनी सारी ऊष्मा और उजास
बचा लेना अपनी थोड़ी सी ऊष्मा
अपना थोड़ा सा उजास
साल के सबसे विकट
दिन के लिये।

-उर्मिला शुक्ल

नूतन वर्ष का स्वागत

फिर जुड़ी
एक कड़ी जीवन में
कर पूरा चक्र-
पदार्पण अगले क्रम में।
चलें बढ़ें
यह लिए कामना,
प्रीत हो, संगीत हो
मन मिलें हों, मीत हों,
मिटें सब संघर्ष, आया नूतन वर्ष
स्वागत करें सहर्ष।

-भावना सक्सेना


नव वर्ष का चाँद

गिलहरी सा फुदकता
ख़त्म हो रहा था
दिसम्बर का आखिरी दिन
शाखों पर चढ़ते हुए
शाम के आँगन से
ऊपर नभ में चमक रहा था
नववर्ष का चाँद और
पछुआ हवा के साथ
उतर रही थी- अल्हड चाँदनी
मुस्कराते हुए- धीरे- धीरे
नए लक्ष्य नए हौंसले,
नए काफिले के साथ
नए वर्ष का अभिनन्दन करने !

-डॉ सरस्वती माथुर

पड़ाव

वक्त !
एक ओर तुम दुबक जाते हो
हाथ की रेखाओं में भविष्य का मजमून ले कर
दूसरी ओर खुल कर पसर जाते हो
चेहरे की लकीरों में अतीत की इबारत बनकर
हाथ की लकीरों से चेहरे की लकीरों का सफ़र
यात्रा है पूरी एक अदद ज़िंदगी की
जिसे तय करते हैं हम
पड़ाव दर पड़ाव,
बदल कर दीवारों पर
नए नए कलैंडर

--संध्या सिंह

३० दिसंबर २०१३

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