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नये बरस जी
 
नये बरस जी, नई रोशनी से
सबको नहलाना

हर प्यासे की प्यास बुझे, हो
चेहरों पर खुशहाली
हर हाँथो को काम मिले अब
कोई रहे न खाली

गाँव, शहर, गलियों, मेड़ों से
हँस-हँस कर बतियाना

तृप्त रहे अम्बर से धरती
आए कभी न सूखा
खेत हरा हो पेट भरा हो
हो न कोई भी भूखा

अटल रहे विश्वास बीज का
तुम ऐसे अँखुआना

- कृष्ण कुमार तिवारी
३० दिसंबर २०१३

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