अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

 नये साल में कामना
 

नये वर्ष की आ गई शीतमयी जब भोर
फैल गया शुभकामना, का चहुँ दिस में शोर॥

नया वर्ष फिर आ रहा, लिये संग में शीत,
मिलो गर्मजोशी लिये, छेड़ मिलन के गीत॥

अशुभ मानते हैँ सभी, यों तेरह का अंक,
सब मिल इसको शुभ करें, राजा हो या रंक॥

कुछ घटनाएँ कर गया, गया साल बेहाल,
फिर से ऐसा ना घटे, आने वाले साल॥

नये साल में कामना, रहें सभी खुशहाल,
बढते भ्रष्टाचार को, आकर निगले काल ॥

--शरद तैलंग
३१ दिसंबर २०१२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter