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एक नया वर्ष है |
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खड़ा मोड़ पर आकर फिर
एक नया वर्ष है
कल से कल का सेतु आज है यह मत भूलो
पाँव जमीं पर जमा, आसमां को भी छू लो
मंगल पर जाने के पहले
भू का मंगल -
कर पायें कुछ तभी कहें
पग तले अर्श है.
आँसू न बहा, दिल जलता है, चुप रह, जलने दे
नयन उनींदे हैं तो क्या, सपने पलने दे
संसद में नूराकुश्ती से
क्या पाओगे?
सार्थक तब जब आम आदमी
कहे हर्ष है.
गगनविहारी माया की ममता पाले है.
अफसर, नेता, सेठ कर रहे घोटाले हैं.
दोष बताएँ औरों के
निज दोष छिपाकर-
शीर्षासन कर न्याय कहे
सिर धरा फर्श है
धनी और निर्धन दोनों अधनंगे फिरते.
मध्यमवर्गी वर्जनाएँ रच ढोते-फिरते..
मनमानी व्याख्या सत्यों
की करे पुरोहित-
फतवे जारी हुए न लेकिन
कुछ विमर्श है
चले अहर्निश ऊग-डूब कब सोचे सूरज?
कर कर कोशिश फल की चिंता काश सकें तज
कंकर से शंकर गढ़ना हो
लक्ष्य हमारा-
विषपायी हो 'सलिल'
कहें: त्यागा अमर्श है
-संजीव सलिल
३१ दिसंबर २०१२ |
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