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शुभकामना
 

सबके मन
मधुबन हों प्रीत के प्रसून खिलें
जन जन के जीवन में एक नई भोर हो।

हरी भरी
'होरी' के खेतों की गोद रहे
फसलों के पाँव रहें भारी इस साल में।
कुटिया के चूल्हों की
आँच नहीं मद्धिम हो
'धनिया' के
चौके पे रोटी हो थाल में।
सिक्कों के दानों से पेट भरे जेबों का
मोद और मंगल का वास ठौर ठौर हो।

सावन के
आँगन में बरखा नचनियाँ सी
सौ सौ बल खावे मेघ मिरदंग की ताल पर।
फागुन की बगिया में
खिल खिल बसंत हँसे
कोयल की
ताल मधुर गूँजे रसाल पर।
ड्योढ़ी मुंडेरों पर चुनमुन हो चिड़ियों की
सरिता सरोवर में जल की हिलोर हो।

रामशंकर वर्मा
३१ दिसंबर २०१२

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