सौ दरवाजे खुल गए, आया साल नवीन।
सजल नयन, संतप्त मन, विदा हुआ प्राचीन।
विदा हुआ प्राचीन, दिलों में याद रहेगा,
बीते कल की बात, पुनः इतिहास कहेगा।
कहे कल्पना आज, समय कर रहा तकाजे,
शुभ मन करें प्रवेश, खुल गए सौ दरवाजे। भूलें बीते वर्ष को, बढ़ें नवल की ओर।
फिर नवीन शुरुआत हो, थाम कर्म की डोर।
थाम कर्म की डोर, नए संकल्प विचारें,
बहु विधि करें प्रयास, देश का नाम उजारें।
करें न फिर दुहराव, हो चुकीं कल जो भूलें,
आगे बढ़ें सदैव, समय जो बीता भूलें।
आएगा नूतन बरस,मचा हुआ है शोर।
चहल पहल है विश्व में, स्वागत की पुरजोर।
स्वागत की पुरजोर, अंक बदले जाएंगे,
नव कैलेंडर आज, घरों में लग जाएंगे।
राग रंग के साथ, रतजगा मन भाएगा ,
सजकर आधी रात, वर्ष नूतन आएगा।
कल की बातें छोड़िए, करें आज की बात।
नया साल फिर आ गया, लेकर नव सौगात।
लेकर नव सौगात, हृदय से पुनः कबूलें।
करें विश्व में नाम, गगन के तारे छू लें।
भूलें बीती रात, सँवारे प्रात नवल की,
करें आज की बात, गौण हैं बातें कल की।
दिशा दिशा में धूम है, गूँज
रहा संगीत।
नया वर्ष, ईश्वर करे, बने सभी का मीत।
बने सभी का मीत, प्रीत के अंकुर फूटें।
खुशहाली के पेड़, उगें फल मिलकर लूटें।
आएगी नव भोर, विश्व की, अर्ध निशा में,
गूँज रहा संगीत, धूम है दिशा दिशा में।
शहरों से की प्रार्थना, गाँवों ने इस बार।
नए बरस को बंधुओं, भेजो हमरे द्वार।
भेजो हमरे द्वार, तरक्की हम भी चाहें।
सूखे रहें न खेत, स्वर्ण सी फसल उगाएँ।
बुत बनकर चुप ओढ़, खड़े हो क्यों बहरों से?
गाँवों ने इस बार प्रार्थना की शहरों से।
--कल्पना रामानी
३१ दिसंबर २०१२ |