नये साल के स्वागत का जोश उतरने के बाद
जब
बुहारा गया कमरा,
तो
ढेरों बासी फूल,
खाली बोतलें
और अनगिनत बधाई पत्रों के साथ फेंक दी गईं
कुछ आत्मीय जनों की अंतरंग चिट्ठियाँ भी,
ऐसा
किसी गलती या लापरवाही से नहीं हुआ,
यह तो होना ही था भाई,
लौटना ही था हमें,
अपने यथार्थ की ओर
अंततः
लेकिन
कुछ गलत भी हुआ
सचमुच, इस क्रम में
जो लिख लिये गये थे इन-उन लिफाफों पर
काम के लोगों के एकांतिक फोन नंबर,
उनकी सीढियों के पते
उनकी पसंद के इत्रों के विलायती नाम,
वह सम्हाले नहीं जा सके,
चले गये
कूड़े में
नये साल के स्वागत का जोश उतरने के बाद
हम माफ नहीं कर पाए देर तक
खुद को
इस भूल के लिये
--अशोक गुप्ता
३१ दिसंबर २०१२ |