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नए वर्ष का एक रंग यह भी
 

समय का चक्र-
घूमते घूमते अनवरत,
लगा जाता...
कितनी गाँठें
इस उम्र की चादर मे
बरस दर बरसI
और हर-
नए साल के जश्न पर,
मिल जाती बिन माँगे ही
लकीरें चेहरे पर...
उपहार स्वरुपI
या फिर -
एक मुहर,
हमारे संघर्ष और अनुभव को
सत्यापित करती...
बतौर झुर्रियाँ
और हम...
अंत तक,
बुढ़ापे के चिह्न
गुनाह की तरह छुपाते
या फिर टेक कर घुटने बेचारगी पर,
सफ़ेद बाल और झुर्रियों को...
उपलब्धि बताते,
तय करते हैं अक्सर
वृद्धावस्था का-
सफर।

-संध्या सिंह
 

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