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नए साल की तस्वीर |
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नए साल की तस्वीर
नए साल की
उफ! कितनी
तस्वीर घिनौनी है।
फिर
अफवाहों से ही
अपनी आँख मिचैनी है।
वही सभी
शतरंज खिलाड़ी
वही पियादे हैं,
यहाँ हलफनामों में भी
सब झूठे वादे हैं,
अपनी मूरत से
मुखिया की
मूरत बौनी है।
आँगन में
बँटकर तुलसी का
बिरवा मुरझाया,
मझली भाभी का
दरपन सा
चेहरा धुँधलाया,
मछली सी
आँखों में
टूटी एक बरौनी है।
गेहूँ की
बाली पर बैठा
सुआ अकेला है,
कहासुनी की
मुद्राएँ हैं
दिन सौतेला है,
दिन भर बजती
दरवाजे की
साँकल मौनी है।
-जयकृष्ण राय तुषार
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