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दो कुंडलियाँ |
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विनय करे भगवान से दिव्यदृष्टि पुरजोर
नहीं सुनाई पड़े प्रभु उग्रवाद का शोर
उग्रवाद का शोर, न जनता मारी जाए
रहें प्रेम से लोग मुहब्बत भारी आए
तुम्हें अलविदा ग्यारह, बारह ठाठ से आना
हो हम पर उपकार समय मनभावन लाना।
पढ़-पढ़कर तीखी नज़र रहिए सदा सचेत
रहे हमेशा लबालब भरा ज्ञान का खेत।
भरा ज्ञान का खेत, पौध नित बढ़े विवेकी
खुशियों का खलिहान बढ़ाए मन में नेकी
दिव्यदृष्टि दो वक्त पा सकें लोग निवाला
तुम्हें मुबारक साल नया हो आने वाला।
दिव्यदृष्टि
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