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नव वर्ष (दो क्षणिकाएँ)
 

(१)
एक पुराना दिन
उतार कर रख गया चादर
भरी भरी भारी सी,
नए ने आकर
झटक फेंके सीले सीले से कुछ लम्हे,
उसे चाहिए नए स्वप्न
रोपने को जगह जरा सी।

(२)
सबने बोये हैं नए
फिर स्वप्न कुछ,
बनेंगे फलदार वृक्ष
प्रभु बस इतनी कृपा करना;
कड़ी धूप से छाया,
आंधियों से रक्षा करना।

भावना सक्सेना
 

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