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प्रवासी का नया साल |
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मैं प्रवासी
सपना एक सँजोये
वर्षों से पलटती रही,
पन्ने विदेशी केलेण्डर के
इंतज़ार में उस निमंत्रण के,
जो देता माह दिसम्बर
एक ढलती शाम की विदाई का
और स्वागत होगा पाहुने सा।
खिलखिलाते नूतन वर्ष का
सपना सच भी हुआ,
मैं आज स्वदेश में हूँ
पर
मन, और आँखें तलाशती हैं
उस प्यार, अपनेपन और उस समाज को
जो ले गयी थी
मैं अपने साथ एक धरोहर
संस्कारों और विचारों की मिट्टी की खूशबू
और पढ़ाती रही जिसका पाठ विदेश मे
गौरवान्वित रही भारतीय होने पर
अब मन
पूछता आप से सवाल,
क्योंकर सड़ गयी
सबसे प्राचीन सभ्यता की सुगंध,
ढक लिया समाज को लूटपाट
अत्याचार और भ्रष्टाचार के बादलों ने
पर अभी भी देर नहीं हुई,
चुनौतियाँ स्वीकारो
आओ मिल कर
नव-वर्ष को सतरंगी बनाएँ
प्यार संस्कृति के सभी रंगों से सजा कर
विश्व के आसमान पर भारत का परचम लहराएँ
-अनीता कपूर
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