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प्रिये नेह दीपक |
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प्रिये नेह दीपक जलाये न
बैठो.
पलक-पाँवड़े यूँ बिछाये न बैठो.
है आना जिसे अजनबी तो नहीं है,
मगन मन यूँ आँगन सजाये न बैठो.
चुनावों का मौसम है वादों का मौसम,
इरादों को अपने भुलाये न बैठो.
कुछ आओ तुम आगे, कुछ सोचें वे आगे,
नए साल में मुँह फुलाये न बैठो.
ये नववर्ष भी रहनुमाओं सा होगा,
बहुत आस इससे लगाये न बैठो.
अनिल वर्मा
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