एक बार फिर से नव वर्ष ने
द्वार पर दस्तक दी है
पल की पंखु़ड़ियों में
दिनों से लदा
सप्ताहों से सजा
महीनों में गूँथा
एक और नया वर्ष
समय ने परोसा है
नई शुरूआत नई उम्मीदें
नए अवसर नई चुनौतियॉं
लेकर आया है
एक और नया वर्ष
उत्सव मनाने के बहाने
कृतसंकल्प होना है
पिछले साल की तरह
देखना इसे हाथ से
फिसलने मत देना
रूठे मीत मना लेना
अहं आड़े न आने देना
गैर को भी गले लगा लेना
सबको अपना बना लेना
माँ को खत लिख
आसीसों से दामन भर लेना
लीक पीटना नहीं
राह अपनी स्वयं बनाना
उस पथ पर चलना
जिस पर कोई चला नहीं
सेवा सदभावना का
पलड़ा भारी रखना
वैमनस्य संकीर्णता ईर्ष्या
शब्दकोश से निकाल फेंकना
आकाश में उड़ान अवश्य भरना
पर पाँव ज़मीन पर ही रखना
विवेक से काम लेना
बाधाओँ को लाँघ जाना
अनुभव की सीढ़ी लगा
सारे सपने साकार करना
अपने आदर्श इतने ऊॅंचे रखना
कि अपनी कचहरी में खड़े
खुद को बरी कर सकना
बेहतर मानव बनने की
कोशिश ज़ारी रखना ।
--सुभाषिणी खेतरपाल
३ जनवरी २०११
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