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मुस्कानों के बीज |
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पलकों के तट चूमकर, कहे नयन-जलधार।
बीते हैं पल दर्द के, हुआ नया भिनसार।।
जीवन कहते हैं जिसे, है सुख-दुख का मेल।
खुशियाँ दो पल जो मिलें, लेकर दुख भी झेल।।
अब खूँटी पर टाँग दे, नफ़रत -भरी कमीज़।
बोना है नव वर्ष में, मुस्कानों के बीज।।
भाई ने परदेस से, किया बहिन को फोन।
तेरी खुशियों से बड़ा, मेरा जग में कौन।।
घर में या परदेस में, सबसे मुझको प्यार।
सबके आँगन में खिले, फूलों का संसार।।
नए साल से हम कहें-करलो दुआ कुबूल।
माफ़ करें हर एक की, जो-जो खटकी भूल।।
मुड़-मुड़कर क्या देखना, पीछे उड़ती धूल।
फूलों की खेती करो, हट जाएँगे शूल।।
अधरों पर मुस्कान ले, कहता है नव वर्ष।
छोड़ उदासी को यहाँ, आ पहुँचा है हर्ष।।
-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
३ जनवरी २०११ |
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