|
|
|
हर गली के दस घरों में शोक है
एक घर मे हर्ष है तो हर्ष क्या
भूख ही जब व्याप्त है हर पेट में
फिर भला नव वर्ष ही नव वर्ष क्या
दुधमुहा बच्चा ही बिलखे देश में
तब कोई उत्कर्ष भी उत्कर्ष क्या
होंठ हस ले, पर हृदय रोता रहे
फिर भला नव वर्ष ही नव वर्ष क्या
बाप की चिंता है बेटी का विवाह
माँ समझती है कि है संघर्ष क्या
और उस पर भी जलें घर में बहू-
फिर भला नव वर्ष ही नव वर्ष क्या
सोचता हूँ, प्राणियों के दर्द को-
कर भी पायेगी दवा स्पर्श क्या
जख्म जब नासूर बन बन कर बहे
फिर भला नव वर्ष ही नव वर्ष क्या
--अंशुल नभ
३ जनवरी २०११ |