अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

नया पृष्ठ फिर आज खुल रहा
 

 

 

 

   

 





 

 


 




 

महाकाल के महाग्रंथ का
नया पृष्ठ फिर आज खुल रहा


वह काटोगे,
जो बोया है.
वह पाओगे,
जो खोया है
सत्य-असत, शुभ-अशुभ तुला पर
कर्म-मर्म सब आज तुल रहा


खुद अपना
मूल्यांकन कर लो
निज मन का
छायांकन कर लो
तम-उजास को जोड़ सके जो
कहीं बनाया कोई पुल रहा?


तुमने कितने
बाग़ लगाये?
श्रम-सीकर
कब-कहाँ बहाए?
स्नेह-सलिल कब सींचा?
बगिया में आभारी कौन गुल रहा?


स्नेह-साधना करी
'सलिल' कब
दीन-हीन में
दिखे कभी रब?
चित्रगुप्त की कर्म-तुला पर
खरा कौन सा कर्म तुल रहा?


खाली हाथ
न रो-पछताओ
कंकर से
शंकर बन जाओ
ज़हर पियो, हँस अमृत बाँटो
देखोगे मन मलिन धुल रहा

-- आचार्य संजीव सलिल
३ जनवरी २०११

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter