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नया पृष्ठ फिर आज खुल
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महाकाल के महाग्रंथ का
नया पृष्ठ फिर आज खुल रहा
वह काटोगे,
जो बोया है.
वह पाओगे,
जो खोया है
सत्य-असत, शुभ-अशुभ तुला पर
कर्म-मर्म सब आज तुल रहा
खुद अपना
मूल्यांकन कर लो
निज मन का
छायांकन कर लो
तम-उजास को जोड़ सके जो
कहीं बनाया कोई पुल रहा?
तुमने कितने
बाग़ लगाये?
श्रम-सीकर
कब-कहाँ बहाए?
स्नेह-सलिल कब सींचा?
बगिया में आभारी कौन गुल रहा?
स्नेह-साधना करी
'सलिल' कब
दीन-हीन में
दिखे कभी रब?
चित्रगुप्त की कर्म-तुला पर
खरा कौन सा कर्म तुल रहा?
खाली हाथ
न रो-पछताओ
कंकर से
शंकर बन जाओ
ज़हर पियो, हँस अमृत बाँटो
देखोगे मन मलिन धुल रहा
-- आचार्य संजीव सलिल
३ जनवरी २०११ |
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