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नव वर्ष अभिनंदन

घाटियों में

          घाटियों में विगत की
छोड़ दिये
सब अँधेरे।
तभी आए
बरस बाद
मुस्कान ले सवेरे।

नए बरस के दरस
के लिए
घाटियॉँ कसमसाई।

चहक उठे पखेरू
हर तरु की
डाल– डाल पर
सूरज की बिन्दिया
खिल गई
धरा –भाल पर।

भोर की शिशु–किरन
ले उजास
धरा पर उतर आई़।

-रामेश्वर दयाल कांबोज 'हिमांशु'

  

नव पल नव उमंग

नव पल नव उमंग दिल में
मन खुशियों से भर जायेगा
आने वाला ये साल नया
संग देखो क्या क्या लायेगा

गुमनाम डरी कुछ आवाजें
जो डर से बोल नहीं पायी
अन्याय से लडकर थककर जो
मजबूत भुजाऐं शिथलायीं.
शायद ये नया साल आकर
फिर से साहस भर जायेगा..
आने वाला ये साल नया
संग देखो क्या क्या लायेगा..

स्मृतियों के पन्नों पर बस
छपा रहा ये साल पुराना
भरी भीड़ मे कौन अकेला
ये सवाल जाना पहचाना.
उम्मीदों के झुरमुट में
एक प्यारा झोंका आयेगा..
आने वाला ये साल नया
संग देखो क्या क्या लायेगा..

कुछ खोया और कुछ खोकर भी
सहमी आँखें चुपचाप रहीं
जाने वाले कुछ पथिकों की
अब भी हैं बाट निहार रहीं.
शायद नव पल आने वाला
उनको भी संग ले आयेगा..
आने वाला ये साल नया
संग देखो क्या क्या लायेगा

--अभय कुमार यादव
 

 

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