ऐपन हो हर द्वार पर, चौखट पर हो मौर
चौरे पर तुलसी पुजैं, आँगन पुजती गौर
हल्दी शुभ माथा छुए, दूब धान ले हाथ
सगुन मनाए देहरी, आशिष फल दे हाथ
माली यह संस्कार दें, बाँटें फूल सुगंध
सबकी लाज बची रहे, बाँधें जो अनुबंध
बच्चे फिर बाँटें यहाँ, मातु-पिता का भार
सुख की साँसें ले सकें, दें ऐसा व्यवहार
पद रज बूढ़े बड़ों की, है तीरथ का फूल
धूल समझ जो फेंकते, मानें अपनी भूल
हर प्राणी जिनके लिए, है ईश्वर का रूप
जिनके 'स्व' में 'विश्व' वे हैं जाड़े की धूप
ऐसी चलें न आँधियाँ उड़े न कोमल फूल
जो लहरों को बाँधते बचे रह सकें कूल
डॉ. विद्याबिंदु सिंह
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