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नव वर्ष अभिनंदन
2007

 शुभ कामना

         

नव किरणें मुस्काकर लाईं
नए वर्ष का नव पैगाम।
कोयल कूक रही है जग में
गूँजेगा भारत का नाम।।

वही आसमाँ वही फिज़ा है
वही दिशाएँ अभी तलक।
नई चेतना नए जोश से
नया सृजन होगा अविराम।।

बहुत रो लिए वर्तमान पर
परिवर्तन की हो कोशिश।
सार्थक होगा तब विचार जब
हालातों पर लगे लगाम।।

पिंजड़े के तोते भी रट के
बातें अच्छी कर लेते।
बस बातों से बात न बनती
करना होगा मिलकर काम।।

नित नूतन संकल्पों से
नव सोच की धारा फूटेगी।
पत्थर पे भी सुमन खिलेंगे
और होगा उपवन अभिराम।।

श्यामल सुमन

  

तेरा है अभिनंदन

भर दे भारत के जन-जन में
खुशहाली का मधुमय चंदन
नव वर्ष तेरा है अभिनंदन

छँट जाएँ बादल मतभेदी
हों शांत दुखों का ये क्रंदन
बालक कोई भूखा न रहे
मानव न रहे अब नग्न बदन
घर-घर में हो समृद्धि सदा
कुछ ऐसे मिलकर करें मनन

मेहनत का मिले सिला सबको
वह नर हो या हो नारायण
दीखे न कहीं मजबूर कोई
उन्नत हों ये उद्योगीकरण
साधना शारदा की पनपे
खिल जाए हर घर में उपवन

आतंकवाद और जातिवाद के
दानव का हो जाए दमन
हर ओर फ़सल लहराती हो
गूँजे हर ओर भ्रमर गुंजन
हों जागरूक कर्तव्यनिष्ठ
अधिकारों का फिर हो न हनन

हर ओर खुशी की किलकारी
हर आँगन पायल की रुनझुन
त्योहार रहें जीवंत सदा
मल्हार भरा हो हर सावन
यह प्रकृति कुपित अब कभी न हो
और तृषित न होवे जन जीवन

सब देश विश्व के मित्र बनें
और कभी नहीं होवे अनबन
सब प्रेम सूत्र में बँध जाएँ
और दुष्टों का हो जाए दलन
सबका मन निर्मल धारा हो
गंगा का जल जैसे पावन

कुँवर शिव प्रताप सिंह

 

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