तेरा है अभिनंदन
भर दे भारत के जन-जन में
खुशहाली का मधुमय चंदन
नव वर्ष तेरा है अभिनंदन
छँट जाएँ बादल मतभेदी
हों शांत दुखों का ये क्रंदन
बालक कोई भूखा न रहे
मानव न रहे अब नग्न बदन
घर-घर में हो समृद्धि सदा
कुछ ऐसे मिलकर करें मनन
मेहनत का मिले सिला सबको
वह नर हो या हो नारायण
दीखे न कहीं मजबूर कोई
उन्नत हों ये उद्योगीकरण
साधना शारदा की पनपे
खिल जाए हर घर में उपवन
आतंकवाद और जातिवाद के
दानव का हो जाए दमन
हर ओर फ़सल लहराती हो
गूँजे हर ओर भ्रमर गुंजन
हों जागरूक कर्तव्यनिष्ठ
अधिकारों का फिर हो न हनन
हर ओर खुशी की किलकारी
हर आँगन पायल की रुनझुन
त्योहार रहें जीवंत सदा
मल्हार भरा हो हर सावन
यह प्रकृति कुपित अब कभी न हो
और तृषित न होवे जन जीवन
सब देश विश्व के मित्र बनें
और कभी नहीं होवे अनबन
सब प्रेम सूत्र में बँध जाएँ
और दुष्टों का हो जाए दलन
सबका मन निर्मल धारा हो
गंगा का जल जैसे पावन
कुँवर शिव प्रताप सिंह
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