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         सूरज खिलखिलाए

 
इस तरह सबके घरों नववर्ष आये
चीरकर हर धुंध सूरज
खिलखिलाए

बादलों-रूठी
हवाओं, से पहल हो, बात हो
बंजरों में अंकुरण की फिर नयी शुरुआत हो
पंख चूजों के लिये
खोंता बनाए

फिर जले क्यों
स्वप्न कोई भी किसी उन्माद में
डूबने पाये नहीं मन-उत्सवी, अवसाद में
हर गली में 'एल ई डी'
जगमगाए

-योगेन्द्र प्रताप मौर्य
१ जनवरी २०२२

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