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जनवरी की धूप
 
द्वार, देहरी से, किचिन से सीढ़ियों से चढ़
कर रही आराम छत पर
जनवरी की धूप!

मूँगफलियों का लगा है ढेर जो आगे
टूँगती ही जा रही है छीलकर उनको
माघ की ठंडी हवा का सामना करती
याद मन में कर रही गुनगुने फागुन को
रेवड़ी,खस्ता गजक का स्वाद लेती है
चल रहा मन में
मकर संक्रांति का प्रारूप!

रोटियाँ हैं सुर्ख, ताजा बनी मक्का की
साथ में मक्खन मिला है साग सरसों का
एक गुड़ की डली छोटी याद दिलवाती
स्वाद अब तक सहेजा जो रखा बरसों का
प्रश्न मन में उठ रहा है साथ में क्या हो
छाछ हो या रायता या
टमाटर का सूप!

लौट आयेंगे अभी कालेज से बच्चे
धरी है उनके लिए उबली शकरकंदी
चाव से सब खूब खायेंगे मगन होकर
कहकहों की मौन से होगी जुगलबंदी
धूप स्वैटर बुन रही अहसास गरमाया
देखते हैं सब ललक से
रंक हो या भूप !

- योगेन्द्र दत्त शर्मा
१ जनवरी २०२२

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