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         नवल वर्ष पर

 
नवल वर्ष पर शुष्क उदधि को भरना सीख
छद्म बादलों का जल छल है, डरना सीख

मृग-छौने जब भरें कुलाँचें
विहँसे भोर
तेरी खुशियाँ लगें चुराने
घर के चोर
मौक्तक संग-संग नित्य मोह के, चरना सीख

नित्य अबाधित निष्कंटक हो
जीवन धार
हों दर्प, द्वैष के अगर व्याल
करना प्रहार
विषदंतों का काल बनें पग, धरना सीख

लिख ऐसा अध्याय हर्ष का
पढ़ लें लोग
नवोत्साह से समय शिला को
गढ़ लें लोग
कर्म-रथी बन हर विपदा को हरना सीख

- प्रो.विश्वम्भर शुक्ल
१ जनवरी २०२२

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